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‘प्यार- मेघदूतम् से एसएमएस तक ‘ -valentine contest

Ek Najar
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‘खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वाकी धार, जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार…. क्या सचमुच ऐसा ही हुआ करता है प्यार। एक ऐसा सब्जेक्ट जो 99 परसेंट लोगों का फेवरेट सब्जेक्ट हुआ करता है, लेकिन सिमटता है तो सिर्फ ‘हम-तुम’ के दायरे में। इन दिनों सभी लोग प्यार पर कुछ न कुछ लिख ही रहे हैं। सेंट वैलेंटाइन को किसी का प्यार मिल रहा है तो किसी की दुत्कार…. खैर इस बहस में पडऩे का कोई फायदा नहीं है। प्यार के मामले में हर कोई अनाड़ी ही होता है, लेकिन बावजूद इसके अनाड़ीपन को स्वीकार करने की हिम्मत किसी में नहीं होती। हमें चेहरे लगाकर और प्यार का वास्ता देकर अपने उल्लू सीधे करने की आदत जो पड़ गई है। स्कूल टाइम में घर में ‘प्यार’ शब्द ही वर्जित हुआ करता था। मुंह से घर के किसी बड़े-बुजुर्ग ने ‘चोली के पीछे क्या’ जैसी लाइनें सुन लीं तो समझ लो कि बस शामत आ गई। पिता जी और मां से थोक के भाव मार-पिटाई तो मिलेगी ही खाना-पीना हराम कर दिया जाएगा। सिक्थ-सेवेंथ तक पहुंचते-पहुंचते एक तरह से घोषित बिगड़ैल लड़कों की शोहबत में रहते-रहते आखिर काफी हद तक तथाकथित प्यार का मतलब समझ में आने लगता है।खैर हम सिक्स्थ से ट्वेल्थ में पहुंच जाते थे, लेकिन दोस्तों कि किसी ‘भाभी जी’ को ग्रीटिंग देने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे। खैर अब तो समय काफी चेंज हो गया है। लाइफ फास्ट हुई है तो साथ ही लव भी फास्ट हो गया है। कहीं यह ‘दिल्ली की सर्दी’ बनकर कहर बरपा रहा है तो कहीं ‘इश्क कमीना’ कहकर इसे दुत्कारा जा रहा है। इश्क कमीना है या हम इस बारे में बाद में बात करेंगे। खैर अब लव स्टोरीज हीर-रांझा जैसी नहीं होतीं और न ही होते हैं लवर्स। किसी के पीछे ‘सदियों तक प्यार’ करने का जुमला दोहराने का टाइम तक किसी के पास नहीं है। प्रेम कहानियां एसएमएस से शुरु होती हैं और नंबर बदल दिए जाने तक खत्म भी हो जाती हैं। अब मुन्नी बदनाम होने पर सुसाइड नहीं करती, बल्कि अपनी बदनामी का ढिढ़ोरा पीट-पीटकर अपने तथाकथित ‘डार्लिंग’ को इंप्रेस करने की कोशिश करती है। अब शीला जवान होती है तो वह घर में दुबक कर नहीं बैठती। प्यार मैट्रो की गति की तर्ज पर फास्ट जो हो गया है। प्यार करने, जताने के साथ ही प्रेमी-प्रेमिकाओं के भी ऑप्शन हो गए हैं। यानि अब किसी को इंप्रैस करने के लिए यह जरूरी नहीं है कि आप कितने सभ्य-सुशील हैं, बल्कि यह दिखाना पड़ता है कि आप कितने ‘फारवर्ड’ हैं। फारवर्ड नहीं हैं तो आप ‘भईया जी’ टाइप घोषित कर दिए जाएंगे। समय-समय की बात है। पहले फिल्मों में फूलों से ही काम चला लिया जाता था, लेकिन अब बिना इमरान हाशमी के बिना दर्शकों को मजा ही नहीं आता। दरअसल आज प्यार सिनेमाहॉल की कोने वाली सीट तक ही सिमटकर जो रह गया है।

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